किसी भी प्राकृतिक आपदा को "अज़ाब" या दैवीय सज़ा कहना एक गंभीर बयान है, और इसे सोच-समझकर कहा जाना चाहिए। इस्लामिक शिक्षाओं और धार्मिक दृष्टिकोण से यह बातें ध्यान देने योग्य हैं:
1. अल्लाह का अज़ाब और प्राकृतिक आपदाएँ:
इस्लाम में यह माना जाता है कि अल्लाह दुनिया के हर घटना का कारण और नियंत्रण करता है।
अज़ाब का ज़िक्र कुरान में उन समुदायों के लिए किया गया है जो बार-बार चेतावनी के बाद भी गुनाह में डूबे रहते थे।
लेकिन हर प्राकृतिक आपदा को अज़ाब कहना उचित नहीं है, क्योंकि आपदा का कारण प्राकृतिक, वैज्ञानिक और सामाजिक परिस्थितियाँ भी हो सकती हैं।
2. आपदाओं का उद्देश्य:
इस्लाम सिखाता है कि आपदाएँ कभी-कभी इब्तिला (परीक्षा) होती हैं, ताकि इंसान सबक ले और अपनी गलतियों को सुधारे।
ऐसी घटनाएँ इंसान को यह याद दिलाती हैं कि वह अल्लाह की शक्ति और कृपा का मोहताज है।
3. दूसरों पर निर्णय देना:
यह तय करना कि कोई आपदा अज़ाब है या नहीं, केवल अल्लाह की जानकारी में है।
दूसरों पर ऐसा बयान देना या उनकी मुश्किलों को सज़ा कहना इस्लामिक दृष्टिकोण से अनुचित हो सकता है।
कुरान और हदीस में लोगों के प्रति दया, सहयोग और उनकी मदद करने पर ज़ोर दिया गया है।
4. मदद और संवेदनशीलता का महत्व:
इस्लाम हमें इंसानियत के लिए खड़ा होने, मुश्किल समय में मदद करने और अपनी ज़िम्मेदारी निभाने का आदेश देता है।
अगर कोई विपदा आती है, तो उसे अज़ाब कहने के बजाय पीड़ित लोगों की मदद करना और उनके लिए दुआ करना सबसे सही कदम है।
निष्कर्ष:
किसी आपदा को अज़ाब करार देना बहुत सोच-समझकर और ज्ञान के साथ किया जाना चाहिए। बेहतर है कि इसे एक प्राकृतिक घटना मानते हुए पीड़ित लोगों की मदद की जाए और अल्लाह से रहमत और माफी की दुआ की जाए।
सैफुल्लाह कमर शिबली


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