चेहरे पर मुस्कुराहट, सर पर चमकती हुई टोपी ,बदन पर स्त्री किए हुए कपड़े और सलीके से दाढ़ी व सर के बाल संवारे हुए किसी मस्जिद के इमाम को जब हम देखते हैं तो हैरत जदह रह जाते हैं कि इनकी भी क्या जिंदगी है ,जितने पैसों में हमारे बच्चों का 1 महीने का खर्च पूरा नहीं हो पाता उतने में यह हजरात ऐश की जिंदगी कैसे जी लेते हैं ?
यह एक ऐसा सवाल है जो अक्सर लोगों के जेहन में आता है और फिर इसका जवाब भी खुद ब खुद जेहन में आ जाता है के इनकी कमाई में अल्लाह पाक बरकत बहुत अता फरमाता है ,यहां एक सवाल उठता है कि अल्लाह पाक सिर्फ इमाम के पैसों में ही बरकत क्यों आता फरमाता है हम भी तो मेहनत से हलाल पैसा कमाते हैं और हदीस शरीफ के मफहुम के मुताबिक अल्लाह पाक हर हलाल कमाने वाले के रोजी में बरकत अता फरमाता है, फिर हमारे पैसे जल्दी क्यों खत्म हो जाते? हालांकि हमारी सैलरी एक इमाम से 5 गुना ज्यादा होती है उसके बावजूद हमारी जरूरतें पूरी क्यों नहीं हो पाती। ? हम एक इमाम की तरह खुशहाल जिंदगी क्यों नहीं गुजार पाते ?
इन सारे सवालों के बीच एक सवाल और आता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमने कभी इमाम की जिंदगी में झांकने की कोशिश ही नहीं की ,उनके कपड़ों को ही हमने उनकी असल जिंदगी समझ लिया?यही सब सोच कर जब हमने इमाम की असल जिंदगी में झांका तो अल्लाह की पनाह, इनकी जिंदगी में इतना दर्द छुपा हुआ होता है के हम सोच भी नहीं सकते
एक इमाम के घर में अगर कोई बीमार हो जाए तो किसी अच्छे हॉस्पिटल में इलाज नहीं करवा सकते ,घर में जवान बहन या बेटी हो तो किसी अच्छी जगह रिश्ता नहीं कर सकते, रहने के लिए अच्छा घर नहीं बनवा सकते,अपने बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में तालीम नहीं दिलवा सकते ,क्या इमाम को कोई हक नहीं कि उनका बच्चा डॉक्टर इंजीनियर बने, अपनी बहन बेटियों का डॉक्टर इंजीनियर से रिश्ता कर सके ?और अच्छा मकान बनाकर उसमें रह सके ,या फिर ऐसा तो नहीं कि यह सारे काम इमाम के लिए जायज़ ही न हो?
इस तरह की हजारों परेशानियां इमाम की जिंदगी का हिस्सा है लेकिन हमने बरकत का ग़लत मफहुम समझ लिया है और यही सोचकर खुश हो जाते हैं कि इमाम साहब खुश हैं
कभी टाइम मिले तो एक बार आप भी अपनी मस्जिद के इमाम की असल जिंदगी को देखने की कोशिश जरूर करें
इमाम के लिए आवाज उठाने वाला कोई नहीं है कि मस्जिद की सजावट में लाखों रुपए खर्च करने वाले इमाम को इतनी कम सैलरी क्यों देते हैं ,जितना हो सके हम सब मिलकर अपने इमाम की सैलरी के लिए आवाज़ उठाएं , अल्लाह पाक अजृ अता फरमाए गा
सैफुल्लाह क़मर
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