मक्का पर हाथी वालों का हमला (570 ईस्वी) एक ऐतिहासिक घटना है, जिसे इस्लामी इतिहास में "आमुल-फील" (हाथी का वर्ष) के नाम से जाना जाता है। इस घटना का संबंध अब्दुल मुत्तलिब (पैगंबर मुहम्मद ﷺ के दादा) और यमन के राजा अब्राह (Abraha) से है।
1. अब्दुल मुत्तलिब कौन थे?
अब्दुल मुत्तलिब, कुरैश कबीले के प्रमुख और काबा के संरक्षक थे।
- उनका असली नाम शैबा बिन हाशिम था।
- वे मक्का के सम्मानित नेता थे और पूरे अरब में उनकी इज्जत थी।
- उन्होंने काबा के कुएं "जमजम" को फिर से खोजा और इसकी देखरेख का जिम्मा उठाया।
2. अब्राह कौन था और वह मक्का पर क्यों चढ़ाई करना चाहता था?
अब्राह यमन का गवर्नर था, जो उस समय अक्सूम (इथियोपिया) के राजा नजाशी के अधीन था।
- उसने सना (यमन) में एक विशाल चर्च (कलीसा) बनाया, जिसका नाम "अल-कुल्लैस" रखा।
- वह चाहता था कि लोग काबा की जगह उसके चर्च की यात्रा करें।
अब्राह का गुस्सा
कहा जाता है कि किसी अरब व्यापारी ने उसके चर्च को अपवित्र कर दिया, जिससे अब्राह को गुस्सा आ गया।
- उसने मक्का पर चढ़ाई करने और काबा को नष्ट करने की ठान ली।
- उसने विशाल हाथियों की एक सेना तैयार की और मक्का की ओर बढ़ा।
3. अब्दुल मुत्तलिब और अब्राह का सामना
जब अब्राह मक्का के पास पहुँचा, तो उसने मक्कावासियों के ऊँट जब्त कर लिए।
- इन ऊँटों में से 200 ऊँट अब्दुल मुत्तलिब के भी थे।
- अब्दुल मुत्तलिब, जो मक्का के सम्मानित नेता थे, अब्राह से मिलने गए।
अब्दुल मुत्तलिब की समझदारी
जब वे अब्राह के सामने पहुंचे, तो अब्राह ने सोचा कि वे काबा की रक्षा के लिए कोई बात करेंगे।
लेकिन अब्दुल मुत्तलिब ने कहा:
"मेरे ऊँट मुझे लौटा दो, क्योंकि मैं उनका मालिक हूँ। काबा का एक मालिक है, वह खुद इसकी रक्षा करेगा!"
अब्राह यह सुनकर हैरान हुआ और बोला:
"मैंने सोचा था कि तुम काबा के लिए कुछ कहोगे, लेकिन तुम तो सिर्फ अपने ऊँटों की बात कर रहे हो!"
अब्दुल मुत्तलिब ने जवाब दिया:
"मैं अपने ऊँटों का मालिक हूँ और उनकी रक्षा की जिम्मेदारी मेरी है। लेकिन काबा का मालिक अल्लाह है, और वह खुद इसकी रक्षा करेगा!"
अब्राह ने ऊँट वापस कर दिए, लेकिन उसने काबा को नष्ट करने का इरादा नहीं बदला।
4. हाथी की सेना और अल्लाह का अजाब
अब्राह अपनी सेना और हाथियों को लेकर काबा की तरफ बढ़ा, लेकिन तभी अल्लाह की तरफ से एक चमत्कार हुआ।
- हजारों अबाबील पक्षियों का झुंड आया, जो अपने पंजों में छोटे पत्थर (सिज्जील) लिए हुए थे।
- इन पत्थरों ने अब्राह की सेना पर बरसना शुरू कर दिया, जिससे उनकी त्वचा जल गई और वे मरने लगे।
- अब्राह खुद भी भयानक बीमारी का शिकार हो गया और बुरी हालत में यमन लौटते हुए रास्ते में ही मर गया।
कुरआन में इस घटना का वर्णन (सूरह अल-फील)
अल्लाह ने इस घटना को कुरआन की सूरह अल-फील में बयान किया:
"क्या तुमने नहीं देखा कि तुम्हारे रब ने हाथी वालों के साथ क्या किया?"
"उसने उनकी चाल को नाकाम कर दिया"
"और उन पर छोटे पक्षी भेजे"
"जो उन पर जले हुए पत्थर फेंक रहे थे"
"तो उन्हें खाए हुए भूसे की तरह बना दिया!"
5. इस घटना के बाद क्या हुआ?
- अब्राह की हार के बाद मक्का और काबा का सम्मान और भी बढ़ गया।
- उसी साल, 570 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद ﷺ का जन्म हुआ।
- इस घटना ने साबित किया कि अल्लाह ही अपने घर (काबा) की रक्षा करने वाला है।
निष्कर्ष: इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
- अल्लाह की योजना सबसे बड़ी होती है।
- कभी भी अहंकार में नहीं आना चाहिए, वरना विनाश निश्चित है।
- धैर्य और विश्वास (तवक्कुल) ही सबसे बड़ी ताकत है, जैसा कि अब्दुल मुत्तलिब ने दिखाया।
- इतिहास हमें सिखाता है कि जो बुरे इरादों से आगे बढ़ते हैं, उनका अंत अच्छा नहीं होता।
यही वजह है कि "आमुल-फील" (हाथी का वर्ष) इस्लामी इतिहास में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक घटना मानी जाती है!
सैफुल्लाह कमर शिबली

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